*हिंदी के 200 महत्वपूर्णे प्रश्न उत्तर*
1 काव्य के तत्व माने गए है -
दो
2 महाकाव्य के उदाहरण है -
रामचरित मानस, रामायण, साकेत, महाभारत, पदमावत, कामायनी, उर्वशी, लोकायतन, एकलव्य आदि
3 मुक्तक काव्य के उदाहरण है-
मीरा के पद, रमैनियां, सप्तशति
4 काव्य कहते है -
दोष रहित, सगुण एवं रमणियार्थ प्रतिपादक युगल रचना को
5 काव्य के तत्व है -
भाषा तत्व, बुध्दि या विचार तत्व, कल्पना तत्व और शैली तत्व
6 काव्य के भेद है -
प्रबंध (महाकाव्य और खण्ड काव्य), मुक्तक काव्य
7 वामन ने काव्य प्रयोजन माना -
दृष्ट प्रयोजन (प्रीति आनंद की प्राप्ति) अदृष्ट प्राप्ति (कीर्ति प्राप्ति)
8 भामह की काव्य परिभाषा है -
शब्दार्थो सहित काव्यम
9 प्रबंध काव्य का शाब्दिक अर्थ है -
प्रकृष्ठ या विशिष्ट रूप से बंधा हुआ।
10 रसात्मक वाक्यम काव्यम परिभाषा है -
पंडित जगन्नाथ का
11 काव्य के कला पक्ष में निहित होती है -
भाषा
12 काव्य में आत्मा की तरह माना गया है-
रस
13 तद्दोषों शब्दार्थो सगुणावनलंकृति पुन: क्वापि, परिभाषा है -
मम्मट की
14 काव्य के तत्व विभक्त किए गए है-
चार वर्गो में प्रमुखतया रस, शब्द
15 कवि दण्डी ने काव्य के भेद माने है-
तीन
16 रमणियार्थ प्रतिपादक शब्द काव्यम की परिभाषा दी है -
आचार्य जगन्नाथ ने
17 काव्य रूपों में दृश्य काव्य है -
नाटक
18 काव्य प्रयोजन की दृष्टि से मत सर्वमान्य है -
मम्मटाचार्य का
19 काव्य प्रयोजनों में प्रमुख माना जाता है।
आनंदानुभूति का
20 काव्य रचना का प्रमुख कारण (हेतु) है -
प्रतिभा का
21 महाकाव्य और खण्ड काव्य में समान लक्षण है -
कथानक उपास्थापन एक जैसा होता है।
22 काव्य रचना के सहायक तत्व है -
वर्ण्य विषय(भाव), अभिव्यक्ति पक्ष (कला), आत्म पक्ष
23 मम्मट के काव्य प्रयोजन है -
यश, अर्थ, व्यवहार ज्ञान, शिवेतरक्षति, संघ पर निवृति, कांता सम्मलित
24 मम्मट के शिवेतर का अभिप्राय है –
अनिष्ट
25 सगुणालंकरण सहित दोष सहित जो होई... परिभाषा है -
चिंतामणि की
26 भारतीय काव्य शास्त्र के अनुसार काव्य के तत्व है -
1 शब्द और अर्थ, 2 रस, 3 गुण, 4 अलंकार, 5 दोष, रीतिय
27 आधुनिक कवियों ने काव्य के प्रयोजन में क्या विचार दिए -
ज्ञान विस्तार, मनोरंजन, लोक मंगल, उपदेश
28 खण्ड काव्य में सर्गखण्ड होते है -
सात से कम
29 शैली के आधार पर काव्य भेद है -
गद्य, पद्य, चम्पू
30 दृश्य काव्य के भेद है -
रूपक और उप रूपक
31 महाकाव्य का प्रधान रस होता है -
वीर, शृंगार या शांत रस
32 महाकाव्य के प्रारंभ में होता है -
मंगलाचरण या इष्टदेव की पूजा
33 रूपक के भेद है -
नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, व्यायोग, समवकार, वीथि, ईहामृग, अंक
34 महाकाव्य में खण्ड या सर्ग होते है -
आठ और अधिक
35 महाकाव्य के एक सर्ग में एक छंद का प्रयोग होता है। इसका परिवर्तन किया जा सकता है -
सर्ग के अंत में।
36 मुक्तक काव्य है - एकांकी सदृश्यों को चमत्कृत करने में समर्थ पद्य
37 प्रबंध काव्य वनस्थली है तो मुक्तक काव्य गुलदस्ता है। यह उक्ति किसने कही -
आचार्य रामचंद्र शुल्क ने
38 मुक्तककार के लक्षण होते है -
मार्मिकता, कल्पना प्रवण, व्यंग्य प्रयोग, कोमलता, सरलता, नाद सौंदर्य
39 मुक्तक के भेद है -
रस मुक्तक, सुक्ति मुक्तक
40 काव्य के गुण है -
काव्य के रचनात्मक स्वरूप का उन्नयन कर रस को उत्कर्ष प्रदान करने की क्षमता
41 भरत और दण्डी के अनुसार काव्य के गुण के भेद है
- श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पदसुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता व कांति
42 आचार्य मम्मट ने काव्य गुण बताए -
माधुर्य, ओज और प्रसाद
43 माधुर्य गुण में वर्जन है - ट, ठ, ड, ढ एवं समासयुक्त रचना
44 काव्य दोष वह तत्व है जो रस की हानि करता है। परिभाषा है -
आचार्य विश्वनाथ की।
45 मम्मट ने काव्य दोष को वर्गीकृत किया -
शब्द, अर्थ व रस दोष में
46 श्रुति कटुत्व दोष है -
जहां परूश वर्णो का प्रयोग होता है।
47 परूष वर्णो का प्रयोग कहां वर्जित है -
शृंगार, करूण तथा कोमल भाव की अभिव्यंजना में
48 परूष वर्ग किस अलंकार में वर्जित नहीं है - यमक आदि में
49 परूष वर्ण कब गुण बन जाते है -
वीर, रोद्र और कठोर भाव में
50 श्रुतिकटुत्व दोष किस वर्ग में आता है -
शब्द दोष में
51 काव्य में लोक व्यवहार में प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग दोष है -
ग्राम्यत्व
52 अप्रीतत्व दोष कहलाता है -
अप्रचलित पारिभाषिक शब्द का प्रयोग। यह एक शास्त्र में प्रसिध्द होता है, लोक में अप्रसिध्द होता है।
53 शब्द का अर्थ बड़ी खींचतान करने पर समझ में आता है उस दोष को कहा जाता है -
क्लिष्टतव
54 वेद नखत ग्रह जोरी अरघ करि सोई बनत अब खात...। में दोष है -
क्लिष्टत्व
55 वाक्य में यथा स्थान क्रम पूर्वक पदो का न होना दोष है -
अक्रमत्व
56 अक्रमत्व का उदाहरण है -
सीता जू रघुनाथ को अमल कमल की माल, पहरायी जनु सबन की हृदयावली भूपाल
57 दुष्क्रमत्व दोष होता है - जहां लोक और शास्त्र के विरूध्द क्रम से वस्तु का वर्णन हो।
58 'आली पास पौढी भले मोही किन पौढन देत' में काव्य दोष है -
ग्रामयत्व
59 काव्य में पद दोष कितने है -
16
60 अर्थ दोष कहते है -
जहां शब्द दोष का निराकरण हो जाए, फिर भी दोष बना रहे वहां अर्थ दोष होता है।
61 वाक्य दोष होते है -
21 इक्कीस
62 अलंकार के भेद होते है -
शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार
63 अलंकार कहते है -
काव्य की शोभा बढाने वाले को।
64 काव्य में अर्थ द्वारा चमत्कार उत्पन्न करते है उसे कहते है -
अर्थालंकार
65 मानवीकरण अलंकार किसे कहते है -
अचेतन अथवा मानवेतर जड़ प्रकृति पर मानव के गुणों एवं कार्य कलापों का आरोप कर उसे मानव सदृश्य सप्राण चित्रित किया जाता है। अमूर्त पदार्थ एवं भावों को मूर्त रूप दिया जाता है।
66 'मुनि तापस जिनते दुख लहही, ते नरेश बिनु पावक दहही' में अलंकार है -
विभावना
67 जहां वास्तव में विरोध न होने पर भी किंचित विरोध का आभास हो वहां अलंकार होता है -
विरोधाभास
68 प्रकृति पर मानव व्यवहार का आरोप किया जाता है वहां अलंकार है -
मानवीकरण
69 'मेघमय आसमान से उतर रही वह संध्या सुंदरी परी सी' में अलंकार है -
मानवीकरण
70 जहां बिना करण या विपरित कारण के रहते कार्य होने का वर्णन हो वहां अलंकार है - विभावना
71 'लोचन नीरज से यह देखो, अश्रु नदी बह आई में अलंकार है' विभावना
72 अलंकारों की निश्चित परिभाषा दी है -
दण्डी ने काव्यादर्श में
73 शब्दालंकार के भेद है - आठ
74 यमक अलंकार है-
जहां एक शब्द एक से अधिक बार आए और हर बार उसका अर्थ भिन्न हो।
75 'अपूर्व थी श्यामल पत्रराशि में कदम्ब के पुष्प कदम्ब की छटा' इस यमक अलंकार में कदम्ब का अर्थ प्रयुक्त हुआ है -
वृक्ष और समूह के लिए
76 यमक अलंकार का उदाहण है -
- फिर झट गुल कर दिया दिया को दोनों आंखे मीची
- भजन कह्यो ताते भयो, भयो न एको बार
- भयेऊ विदेह विदेह विसेखी
- तीन बेर खाती ते वें तीन बेर खाती है
- बसन देहु, व्रज में हमें बसन देहु ब्रजराज
- सारंग ले सारंग चली, सारंग पूगो आय
77 अनेक अर्थो का बोध कराने वाला एक शब्द कविता में होता है उसे कौनसा अलंकार कहते है - श्लेष
78 श्लेष अलंकार के उदाहरण है -
(रेखांकित)
- जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति छाई
- दुर्दिन में आंसू बनकर वह आज बरसने आई
- चली रघुवीर सिलीमुख धारी
- पानी गये न उबरे मोती मानुष चून
- नवजीवन दो घनश्याम हमें
- सुबरन को ढूंढत फिरें कवि, कामी अरू चोर
79 सौंदर्यमलंकार उक्ति किसकी है -
आचार्य वामन की
80 किसी प्रस्तुत वस्तु की उसके किसी विशेष गुण, क्रिया, स्वभाव आदि की समानता के आधार पर अन्य अप्रस्तुत से समानता स्थापित की जाए तो अलंकार होगा - उपमा अलंकार
81 उपमा के अंग है - उपमेय (प्रस्तुत), उपमान (अप्रस्तुत), वाचक, साधारण धर्म
82 पूर्णापमा कहते है - जिसमें उपमा के चारों अंगों का उल्लेख हो।
83 लुप्तोपमा कहते है -
उपमा में चारों अंगों में से एक या एक से अधिक अंग लुप्त हो
84 पूर्णापमा के उदाहरण है -
मुख कमल जैसा सुंदर है
- कोमल कुसुम समान देह हो। हुई तप्त अंगारमयी
85 लुप्तोपमा के उदाहरण है -
मुख कमल जैसा
- उन वर जिसके है सोहती मुक्तमाला वह नव नलिनी से नेत्रवाला कहा है
86 जब उपमा में एक उपमेय के अनेक उपमान हो तो अलंकार होगा -
मालोपमा
87 मालोपमा के उदाहरण है -
- मुख चंद्र और कमल समान है
- नील सरोरूह, नील मनी, नील नीरधर श्याम
- आशा मेरे हृदय मरू की मंजु मंदाकिनी
88 उपमेय में उपमान की संभावना को अलंकार कहते है - उत्प्रेक्षा
89 उपमेय में संभावना की अभिव्यक्ति के शब्द है - मानो, मनो, जानो
90 उत्प्रेक्षा, रूपक व उपमा से किस कारण अलग होता है - संभावना
91 उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण है -
- मानो दो तारे क्षितिज जाल से निकले
- शरद इंदिरा के मंदिर की मानो कोई गैल रही
- देख कर किसी की मृदु मुस्क्यान, मानो हंसी हिमालय की है
- विधु के वियोग से विकल मूक, नभ जला रहा था अपना उर
जलती थी तवा सदृश्य पथ की रज भी बनी भऊर
92 उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद है -
वस्तुत्प्रेक्षा, हेतुत्प्रेक्षा, फलोत्प्रेक्षा
93 एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावपा की जाती है (एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है) उसमें अलंकार होगा -
वस्तुत्प्रेक्षा
94 वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण है -
- लखत मंजु मुनि मण्डली मध्य सीय रघुचंद, ज्ञानसभा जनु तनु धरे भगति सच्चिानंद
- जनु ग्रह दशा दूसह दुखदायी
- हरि मुख मानो मधुर मयंक
95 हेतुत्प्रेक्षा अलंकार कहा जाता है - इसमें अहेतु में हेतु की संभावना की जाती है, जो हेतु नहीं है उसे हेतु मान लिया जाता है।
96 हेतुत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण है -
- अरूण भाये कोमल चरण भुवि चलिबे तें मानु
- मुख सम नहि, याते मनों चंदहि छाया छाय
- मुख सम नहि याते कमल मनु जल रह्ाो छिपाई
- सोवत सीता नाथ के भृगु मुनि दीनी लात
- वह मुख देख पाण्डू सा पडकर, गया चंद्र पश्चिम की ओर
97 फलोत्प्रेक्षा अलंकार कहते है - अफल में फल (उद्देश्य) की संभावना की जाती है।
98 फलोत्प्रेक्षा के उदाहरण है -
- तब मुख समता लहन को जल सेवत जलजात
- तब पद समता को कमल जल सेवत इक पांय
- बढ़त ताड को पेड यह मनु चूमन आकाश
99 रूपक अलंकार कहते है - जब एक वस्तु पर दूसरी वस्तु का आरोप किया जाए यथा मुख कमल है । (उपमेय में उपमान का आरोप किया जाए)
100 रूपक अलंकार के भेद है -
सांग रूपक, निरंग रूपक, परंपरित रूपक
101 सांग रूपक कहते है -
जब उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए साथ ही उपमान के अंगों का भी उपमेय के अंगों पर आरोप किया जाए।
102 सांग रूपक के उदाहरण है -
- उद्यो ! मेरी ह्दयतल था एक उद्यान न्यारा, शोभा देती अमिल उसमें कल्पना क्यारियां थी
- न्यारे- न्यारे कुसुम कितने भाव के थे अनेको, उत्साह के विपुल विटपी मुग्धकारी महा थे
103 जब केवल उपमान का आरोप उपमेय पर किया जाए तो रूपक होगा - निरंग रूपक
104 निरंग रूपक के उदाहण है -
- चरन- कमल मृदु मंजु तुम्हारे
- हरि मुख मुदुल मयंक
105 परम्परित रूपक है - परम्परित में दो रूपक होते है। एक रूपक दूसरे से परम्पराबध्द होता है।
106 परम्परित रूपक के उदाहरण है -
- आशा मेरे ह्दय मरू की मंजु मंदाकिनी है
- रवि कुल- कैरव विधु रघुनायक
- उदयो ब्रज नभ आई यह हरि मुख मधुर मयंक
107 जब सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान का भ्रम हो तो अलंकार होगा - भ्रांतिमान अलंकार
108 भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण है -
- जानि श्याम को स्याम घन नाचि उठे वन मोर
- ओस बिंदु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान
- मनि- सुख मेली ठारि कपि देही
- पट पोंछति चूनो समुझि नारी निपट अयानि
109 संदेह अलंकार की परिभाषा है - जब सादृश्य के कारण एक वस्तु में अनेकन्य वस्तु के होने की संभावना पडे अौर निश्चय न हो पाए तब संदेह अलंकार होता है।
110 संदेह अलंकार की पहचान के वाचक शब्द है - कि, किंधो, या, अथवा आदि
111 संदेह अलंकार के उदाहरण है -
- हे सखी! यह हरि का मुख है या चंद्रमा उगा है
- कहहि सप्रेम एक- एक वाही, राम लखन सखी हो हिं कि नाहीं
112 असंगति अलंकार है - जब साथ रहने वाली वस्तुओं को अलग- अलग स्थानों में रखा जाए।
113 असंगति अलंकार के उदाहरण है -
- पायन की सुधि भूल गयी, अकुलाय महावर आंखिन दीनो
- आये जीवन देन घन, लागे जीवन लेन
114 विभावना अलंकार के उदाहरण है -
- बिनु पद चले, सुने बिनु काना
- प्यास मिटी पानी बिना, मोहन को मुख देखि
- सहस सवार जिते सवा लेकर सौ असवार
- तेज छत्र धारिन हूं, असहन ताप करंत
115 सीतहहि लै दसकंध गयो, पै गयो है विचारो समुंदर बांध्यो में अलंकार है - असंगति
116 लागत लाज लगाम नहिं, नैक न गहत मरो, होत तोहि लखि बाल के दृग तुरंग मुंह जोर में अलंकार है - रूपक
117 घिर रहे थे घुंघराले बाल, अंस अवलम्बित मुख के पास नील घन शावक से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास में अलंकार होगा - उत्प्रेक्षा
118 जब उपमेय और उपमान में भिन्नता होने पर भी समानता स्थापित की जाए तब अलंकार होगा - उपमा
119 उपमेय पर उपमान का निषेध रहित आरोप होने पर अलंकार होगा - रूपक
120 लता भवन तें प्रकट भे, तेहि औसर दोउ भाई, निकले जनु जुग विमल विधु, जलद पटल बिलगाए में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
121 सादृश्यस के कारण उपमेय में उपमान का संशय हो वहां अलंकार होगा - संदेह
122 उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण है - उपमेय में उपमान की कल्पना
123 अलंकार व लक्षणों को सुमेलित कीजिए -
- यमक - भिन्न अर्थ वाले वर्ण समुदाय की क्रमश: आवृति
- श्लेष - एक ही शब्द में अनेक अर्थो का अभिधान
- असंगति - कारण व कार्य के निरंतर सम्बन्ध के परित्याग के साथ विरोध का आभास
- विभावना - प्रसिध्द कारण के अभाव में कार्योत्पति का चमत्कारपूर्ण वर्णन
124 सादृश्य के कारण उपमेय को निश्चयपूर्वक उपमान समझ लिया जाए तब कौनसा अलंकार होगा - भ्रांतिमान
125 जड़ प्रकृति के सजीव चित्रण के लिए छायावादी कवियों ने किस अलंकार का बहुतायत में प्रयोग किया - मानवीकरण
126 बीती विभावरी जाग री, अम्बर पनघट में डूबो रही तारा घट उषा नागरी में अलंकार है - रूपक और मानवीकरण
127 ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी, ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती है में अलंकार है - यमक
128 यों- यों बुडे स्याम रंग, त्यों- त्यों उवल होय में अलंकार है - विरोधाभास
129 वह इष्टदेव के मंदिर की पूजा सी, वह दीपशिख सी शांत भाव में लीन में अलंकार है - उपमा
130 भ्रांतिमान, विरोधाभास, विभावना व श्लेष में अर्थालंकार नहीं है - श्लेष
131 जहां काव्य में चमत्कार अर्थ पर आश्रित होता है, वहां अलंकार होगा - अर्थालंकार
132 सोहत ओढे पीत पट, स्याम सलोने गात, मनो नीलमनि सैल पर आतपपरयो प्रभात में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
133 पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात में अलंकार है- उपमा
134 धीरे- धीरे हिम आच्छादन हटने लगा धरातल से, जगी वनस्पतियां अलसाइ, मुख धोती शीतल जल से में अलंकार होगा - मानवीकरण
135 बढत- बढत सम्पति सलिल, मन सरोज बढ जाए, घटत- घटत फिर ना घटे बरू समूल कुम्हिलाय में अलंकार है - रूपक
136 इस काल मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा, मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
137 जानि स्याम घनश्याम को नाचि उठे वन मोर में अलंकार है - भ्रांतिमान
138 मुनि तापस जिनते दुख लहही ते नरेश बिनु पावक दहही में अलंकार होगा - विभावना
139 सारी बिच नारी है कि नारी बीच सारी है, सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है में अलंकार है - संदेह
140 उन्नत हिमालय से धवल यह सुरसरी यों टूटती मानो पयोधर से धरा के दुग्ध धारा छुटती में अलंकार होगा - उत्प्रेक्षा
141 जय- जय जय गिरिराज किशोरी, जय महेश मुख चंद्र चकोरी में अलंकार है - रूपक
142 सरद सरोरूह नैन, तुलसी भरे सनेह जल में अलंकार है- रूपक
143 है बिखेर देती वसुंधरा, मोती सबके सोने पर, रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होने पर में अलंकार है - मानवीकरण
144 बिनु पद चलै, सुने बिनु काना, कर बिनु कर्म करै विधि नाना में अलंकार है - विभावना
145 सरद सरोरूह नैन, तुलसी भरे सनेह जल में अलंकार है - रूपक
146 पीपरपात- सरिस मन डोला में अलंकार है - उपमा
147 रहिमन जो गति दीप की कुल कपूत गति सोय, बारे उजियिारे लगे बढे अंधेरो होय में अलंकार होगा - श्लेष
148 मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड, अवलोक रहा था बार- बार नीचे जल में निज महाकार में अलंकार दृष्टिगत होता है - रूपक
149 नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो यों बिजली का फूल, मेघ वन बीच गुलाबी रंग में अलंकार है - उत्प्रेक्षा व रूपक
150 निदंक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, बिनु पानी साबुन बिना, निरमल करत सुभाय में अलंकार है - विभावना
151 या मुरली मुरलीधर की, अधरानधरी अधरा न धरोंगी में अलंकार है - यमक
152 तुलसी सुरेश- चाप, कैधों दामिनी कलाप, कैधो चली मेरू ते कृसानु सरि भारी है में अलंकार है - संदेह
153 धनि सूखे भरे भादो मांहा, अबहु न आये सींचन नाहा में अलंकार है - विरोधाभास
154 कपि करि हृदय विचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब जानि असोक अंगार सीय हरिष उठि कर गह्यो में अलंकार है - भ्रांतिमान
155 कहते हुए यो पार्थ के दो बूंद, आंसू गिर पडे, मानो हुए दो सीपियों से व्यक्त दो मोती बडे में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
156 भजन कह्यो तासो भयो, भयो न एकौ बार, दूरि भजन जासों कह्यो, सौ तै भयों गंवार में अलंकार है - यमक
157 लोचन सारथ करत है, तिल उपजावत नेह में अलंकार है - श्लेष
158 धीरे- धीरे संशय से उठ, बढ अपयश से शीघ्र अछोर, नभ के उर में उमड मोह से फैल लालसा से निशि भोर में अलंकार है - उपमा
159 उपमा के वाचक शब्द है - समान, सम, सा, से सी आदि
160 उत्प्रेक्षा के वाचक शब्द है - मनु, मानो, जनु, जनहू, जानो, मनहु आदि
161 रूपक के वाचक शब्द है - कोई भी नहीं इसमें उपमेय और उपमान होते है।
162 जहां कारण एक स्थान पर तथा कार्य अन्य स्थान पर वर्णित किया जाए वहां अलंकार होता है- असंगति
163 संदेह अलंकार के वाचक शब्द है = किधों, कैधों, या, अथवा
छन्द (ष्ट॥्हृष्ठ)
164 गणों की संख्या होती है - आठ (य मा ता रा ज भा न स ल ग म)
165 गण में कितने वर्ण होते है - तीन गुरु (स्स्स्)
166 रोला और उल्लाला के संयोग से बनने वाला छंद है - छप्पय
167 वर्ण, मात्रा, गति, यति के नियमों से नियंत्रित रचना कहलाती है - छंद
168 तीन वर्णो का समूह कहलाता है - गण
169 किस गण में तीनों वर्ण गुरु होते है - मगण
170 किस गण में तीनों वर्ण लघु होते है - नगण
171 पात भरी सहरी सकल सुत बारे- बारे। किस छंद का उदाहरण है - कवित्त का
172 मात्रिक छंद कहते है - मात्रिक छंद में एक मात्रा, दो मात्रा या संयुक्ताक्षर के आधार पर चरणों में मात्रा की गणना की जाती है। मात्रा संख्या का विधान होने से इन्हें मात्रिक छंद कहते है।
173 वर्णिक छंद की परिभाषा है - वर्णिक छंद में वर्णो की गणना होतीी है इसके लिए गण विधान रहता है। चरण में गणों के अनुसार वर्ण रखे जाते है उसी के अनुसार यति- गति रखी जाती है।
174 मात्रिक सम छंद है - तोमर, चौपई, चौपाई, शृंगार, रोला, रूपमाला, गीतिका, हरिगीतिका, सोरठाा, उल्लाला
175 मात्रिक विषम छंद है- कुण्डलिया, दोहा, रोला, छप्पय
176 वर्णिक सम छंद है- इंद्रवज्रा, उपेन्द्र वज्रा, उपजाति, वंशस्थ, भुजंग प्रयात, तोटक, दु्रतविलम्बित, वसंततिलका, शिखरणी, मंदाक्रांता, मतगयंद, मालती
177 'किसको पुकारे, यहां रोकर अरण्य बीच, चाहे जो करो शरण्य शरण तिहारे है' में छंद है - कवित्त
178 दिवस का अवसान समीप था। यह किस चरण का छंद है - दु्रत विलम्बित
179 कवित्त छंद के प्रत्येक चरण में वर्णो की संख्या होती है - 31
180 हरिगीतिका छंद के प्रत्येक चरण में मात्राएं होती है - 28 तथा अंत में एक लघु एक गुरु
181 दिवस एक प्रभंजन का हुआ। अति प्रकोप घटा नभ में घिरी। किस वर्णिक छंद से समबन्धित है - दुतविलम्बित
182 पदकमल धोई चढाई नाव न नाथ उतराई चहों। किस छंद से सम्बन्धित है - सवैया
183 दोहा छंद के विषम चरणों की मात्राएं होती है- 13- 13
184 छंद शास्त्र में यति कहते है - लय का अनुगमन करने वाले विरामों को
185 छंद शास्त्र में गति कहते है- लय के अनुसार प्रवाह का निर्वाह करना
186 छंद शास्त्र में गति क्यों आवश्यक है- मात्रिक छंदों में चरण की मात्राओं की सही गणना का ध्यान रखने के लिए।
187 किस छंद के प्रत्येक चरण में क्रमश: एक नगण, दो भगण और एक रगण होता है और प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते है- दुतविलम्बित छंद में (न भा भ रा एवं 12 वर्ण)
188 दु्रतविलम्बित छंद के उदाहरण है -
- प्रबल जो तुम्हे में पुरूषार्थ हो, सुलभ कौन तुम्हे न पदार्थ हो
प्रगति के पथ में विचरो उठो। भुवन में सुख- शांति भरो उठो
- दिवस का अवसान समीप था, गगन कुछ लोहित हो चला
189 हरिगीतिका छंद का परिचय है - यह मात्रिक छंद है। प्रत्येक चरण में कुल 28 मात्रा। 16- 12 पर यति। चरणांत में एक लघु तथा एक गुरु वर्ण होना आवश्यक
190 हरिगीतिका के उदाहरण है -
- जो चाहता संसार में कुछ मान औ सम्मान है, उसके लिए इस मंत्र से बढ कर न और विधान है
- जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है।
191 कवित्त छंद की परिभाषा हे - यह वर्णिक मुक्तक छंद है। इसमें केवल वर्णो की संख्या निश्चित रहती है। प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है तथा 16 व 15 वर्णो पर यति होती है। इसे मनहरण कवित्त छंद भी कहते है।
192 मनहरण कवित्त या धनाक्षरी के उदाहरण है -
- पात भरी सहरी, सकल सुत बोर- बोर, केवट की जाति, कुछु बेद ना पढाइहों
193 सवैया छंद का उदाहरण है -
- पदकमल धोई चढाई नाव न नाथ उतराई चहौं।
194 दोहा छंद के लक्षण है - यह मात्रिक छंद है। इसमें विषम चरणों में 13- 13 मात्राएं तथा सम चरण में 11- 11 मात्राएं होती है। विषम चरण के अंत में जगण (ढ्ढ स् ढ्ढ) न रहे। सम चरण के अंत में लघु होता है।
195 दोहा छंद का उदाहरण है = नहीं पराग नहिं मधुर मधु,नहि विकास इही काल
- मानस मंदिर में सती, पति की प्रतिमा थाप
जलती सी उस विरह में, बनी आरती आप
196 बत्तीस से अधिक मात्राओं के और छब्बीस से अधिक वर्णो के छंद कहलाते है - दण्डक
197 छंद की प्रत्येक पंक्ति कहलाती है - चरण
198 चारों चरणों में समान मात्राओं वाले छंद को कहते है - मात्रिक सम छंद
199 छंद में पंक्ति का पहला व तीसरा चरण कहलाता है - विषम
200 छंद में पंक्ति का दूसरा और चौथा चरण कहलाता है - सम
1 काव्य के तत्व माने गए है -
दो
2 महाकाव्य के उदाहरण है -
रामचरित मानस, रामायण, साकेत, महाभारत, पदमावत, कामायनी, उर्वशी, लोकायतन, एकलव्य आदि
3 मुक्तक काव्य के उदाहरण है-
मीरा के पद, रमैनियां, सप्तशति
4 काव्य कहते है -
दोष रहित, सगुण एवं रमणियार्थ प्रतिपादक युगल रचना को
5 काव्य के तत्व है -
भाषा तत्व, बुध्दि या विचार तत्व, कल्पना तत्व और शैली तत्व
6 काव्य के भेद है -
प्रबंध (महाकाव्य और खण्ड काव्य), मुक्तक काव्य
7 वामन ने काव्य प्रयोजन माना -
दृष्ट प्रयोजन (प्रीति आनंद की प्राप्ति) अदृष्ट प्राप्ति (कीर्ति प्राप्ति)
8 भामह की काव्य परिभाषा है -
शब्दार्थो सहित काव्यम
9 प्रबंध काव्य का शाब्दिक अर्थ है -
प्रकृष्ठ या विशिष्ट रूप से बंधा हुआ।
10 रसात्मक वाक्यम काव्यम परिभाषा है -
पंडित जगन्नाथ का
11 काव्य के कला पक्ष में निहित होती है -
भाषा
12 काव्य में आत्मा की तरह माना गया है-
रस
13 तद्दोषों शब्दार्थो सगुणावनलंकृति पुन: क्वापि, परिभाषा है -
मम्मट की
14 काव्य के तत्व विभक्त किए गए है-
चार वर्गो में प्रमुखतया रस, शब्द
15 कवि दण्डी ने काव्य के भेद माने है-
तीन
16 रमणियार्थ प्रतिपादक शब्द काव्यम की परिभाषा दी है -
आचार्य जगन्नाथ ने
17 काव्य रूपों में दृश्य काव्य है -
नाटक
18 काव्य प्रयोजन की दृष्टि से मत सर्वमान्य है -
मम्मटाचार्य का
19 काव्य प्रयोजनों में प्रमुख माना जाता है।
आनंदानुभूति का
20 काव्य रचना का प्रमुख कारण (हेतु) है -
प्रतिभा का
21 महाकाव्य और खण्ड काव्य में समान लक्षण है -
कथानक उपास्थापन एक जैसा होता है।
22 काव्य रचना के सहायक तत्व है -
वर्ण्य विषय(भाव), अभिव्यक्ति पक्ष (कला), आत्म पक्ष
23 मम्मट के काव्य प्रयोजन है -
यश, अर्थ, व्यवहार ज्ञान, शिवेतरक्षति, संघ पर निवृति, कांता सम्मलित
24 मम्मट के शिवेतर का अभिप्राय है –
अनिष्ट
25 सगुणालंकरण सहित दोष सहित जो होई... परिभाषा है -
चिंतामणि की
26 भारतीय काव्य शास्त्र के अनुसार काव्य के तत्व है -
1 शब्द और अर्थ, 2 रस, 3 गुण, 4 अलंकार, 5 दोष, रीतिय
27 आधुनिक कवियों ने काव्य के प्रयोजन में क्या विचार दिए -
ज्ञान विस्तार, मनोरंजन, लोक मंगल, उपदेश
28 खण्ड काव्य में सर्गखण्ड होते है -
सात से कम
29 शैली के आधार पर काव्य भेद है -
गद्य, पद्य, चम्पू
30 दृश्य काव्य के भेद है -
रूपक और उप रूपक
31 महाकाव्य का प्रधान रस होता है -
वीर, शृंगार या शांत रस
32 महाकाव्य के प्रारंभ में होता है -
मंगलाचरण या इष्टदेव की पूजा
33 रूपक के भेद है -
नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, व्यायोग, समवकार, वीथि, ईहामृग, अंक
34 महाकाव्य में खण्ड या सर्ग होते है -
आठ और अधिक
35 महाकाव्य के एक सर्ग में एक छंद का प्रयोग होता है। इसका परिवर्तन किया जा सकता है -
सर्ग के अंत में।
36 मुक्तक काव्य है - एकांकी सदृश्यों को चमत्कृत करने में समर्थ पद्य
37 प्रबंध काव्य वनस्थली है तो मुक्तक काव्य गुलदस्ता है। यह उक्ति किसने कही -
आचार्य रामचंद्र शुल्क ने
38 मुक्तककार के लक्षण होते है -
मार्मिकता, कल्पना प्रवण, व्यंग्य प्रयोग, कोमलता, सरलता, नाद सौंदर्य
39 मुक्तक के भेद है -
रस मुक्तक, सुक्ति मुक्तक
40 काव्य के गुण है -
काव्य के रचनात्मक स्वरूप का उन्नयन कर रस को उत्कर्ष प्रदान करने की क्षमता
41 भरत और दण्डी के अनुसार काव्य के गुण के भेद है
- श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पदसुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता व कांति
42 आचार्य मम्मट ने काव्य गुण बताए -
माधुर्य, ओज और प्रसाद
43 माधुर्य गुण में वर्जन है - ट, ठ, ड, ढ एवं समासयुक्त रचना
44 काव्य दोष वह तत्व है जो रस की हानि करता है। परिभाषा है -
आचार्य विश्वनाथ की।
45 मम्मट ने काव्य दोष को वर्गीकृत किया -
शब्द, अर्थ व रस दोष में
46 श्रुति कटुत्व दोष है -
जहां परूश वर्णो का प्रयोग होता है।
47 परूष वर्णो का प्रयोग कहां वर्जित है -
शृंगार, करूण तथा कोमल भाव की अभिव्यंजना में
48 परूष वर्ग किस अलंकार में वर्जित नहीं है - यमक आदि में
49 परूष वर्ण कब गुण बन जाते है -
वीर, रोद्र और कठोर भाव में
50 श्रुतिकटुत्व दोष किस वर्ग में आता है -
शब्द दोष में
51 काव्य में लोक व्यवहार में प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग दोष है -
ग्राम्यत्व
52 अप्रीतत्व दोष कहलाता है -
अप्रचलित पारिभाषिक शब्द का प्रयोग। यह एक शास्त्र में प्रसिध्द होता है, लोक में अप्रसिध्द होता है।
53 शब्द का अर्थ बड़ी खींचतान करने पर समझ में आता है उस दोष को कहा जाता है -
क्लिष्टतव
54 वेद नखत ग्रह जोरी अरघ करि सोई बनत अब खात...। में दोष है -
क्लिष्टत्व
55 वाक्य में यथा स्थान क्रम पूर्वक पदो का न होना दोष है -
अक्रमत्व
56 अक्रमत्व का उदाहरण है -
सीता जू रघुनाथ को अमल कमल की माल, पहरायी जनु सबन की हृदयावली भूपाल
57 दुष्क्रमत्व दोष होता है - जहां लोक और शास्त्र के विरूध्द क्रम से वस्तु का वर्णन हो।
58 'आली पास पौढी भले मोही किन पौढन देत' में काव्य दोष है -
ग्रामयत्व
59 काव्य में पद दोष कितने है -
16
60 अर्थ दोष कहते है -
जहां शब्द दोष का निराकरण हो जाए, फिर भी दोष बना रहे वहां अर्थ दोष होता है।
61 वाक्य दोष होते है -
21 इक्कीस
62 अलंकार के भेद होते है -
शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार
63 अलंकार कहते है -
काव्य की शोभा बढाने वाले को।
64 काव्य में अर्थ द्वारा चमत्कार उत्पन्न करते है उसे कहते है -
अर्थालंकार
65 मानवीकरण अलंकार किसे कहते है -
अचेतन अथवा मानवेतर जड़ प्रकृति पर मानव के गुणों एवं कार्य कलापों का आरोप कर उसे मानव सदृश्य सप्राण चित्रित किया जाता है। अमूर्त पदार्थ एवं भावों को मूर्त रूप दिया जाता है।
66 'मुनि तापस जिनते दुख लहही, ते नरेश बिनु पावक दहही' में अलंकार है -
विभावना
67 जहां वास्तव में विरोध न होने पर भी किंचित विरोध का आभास हो वहां अलंकार होता है -
विरोधाभास
68 प्रकृति पर मानव व्यवहार का आरोप किया जाता है वहां अलंकार है -
मानवीकरण
69 'मेघमय आसमान से उतर रही वह संध्या सुंदरी परी सी' में अलंकार है -
मानवीकरण
70 जहां बिना करण या विपरित कारण के रहते कार्य होने का वर्णन हो वहां अलंकार है - विभावना
71 'लोचन नीरज से यह देखो, अश्रु नदी बह आई में अलंकार है' विभावना
72 अलंकारों की निश्चित परिभाषा दी है -
दण्डी ने काव्यादर्श में
73 शब्दालंकार के भेद है - आठ
74 यमक अलंकार है-
जहां एक शब्द एक से अधिक बार आए और हर बार उसका अर्थ भिन्न हो।
75 'अपूर्व थी श्यामल पत्रराशि में कदम्ब के पुष्प कदम्ब की छटा' इस यमक अलंकार में कदम्ब का अर्थ प्रयुक्त हुआ है -
वृक्ष और समूह के लिए
76 यमक अलंकार का उदाहण है -
- फिर झट गुल कर दिया दिया को दोनों आंखे मीची
- भजन कह्यो ताते भयो, भयो न एको बार
- भयेऊ विदेह विदेह विसेखी
- तीन बेर खाती ते वें तीन बेर खाती है
- बसन देहु, व्रज में हमें बसन देहु ब्रजराज
- सारंग ले सारंग चली, सारंग पूगो आय
77 अनेक अर्थो का बोध कराने वाला एक शब्द कविता में होता है उसे कौनसा अलंकार कहते है - श्लेष
78 श्लेष अलंकार के उदाहरण है -
(रेखांकित)
- जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति छाई
- दुर्दिन में आंसू बनकर वह आज बरसने आई
- चली रघुवीर सिलीमुख धारी
- पानी गये न उबरे मोती मानुष चून
- नवजीवन दो घनश्याम हमें
- सुबरन को ढूंढत फिरें कवि, कामी अरू चोर
79 सौंदर्यमलंकार उक्ति किसकी है -
आचार्य वामन की
80 किसी प्रस्तुत वस्तु की उसके किसी विशेष गुण, क्रिया, स्वभाव आदि की समानता के आधार पर अन्य अप्रस्तुत से समानता स्थापित की जाए तो अलंकार होगा - उपमा अलंकार
81 उपमा के अंग है - उपमेय (प्रस्तुत), उपमान (अप्रस्तुत), वाचक, साधारण धर्म
82 पूर्णापमा कहते है - जिसमें उपमा के चारों अंगों का उल्लेख हो।
83 लुप्तोपमा कहते है -
उपमा में चारों अंगों में से एक या एक से अधिक अंग लुप्त हो
84 पूर्णापमा के उदाहरण है -
मुख कमल जैसा सुंदर है
- कोमल कुसुम समान देह हो। हुई तप्त अंगारमयी
85 लुप्तोपमा के उदाहरण है -
मुख कमल जैसा
- उन वर जिसके है सोहती मुक्तमाला वह नव नलिनी से नेत्रवाला कहा है
86 जब उपमा में एक उपमेय के अनेक उपमान हो तो अलंकार होगा -
मालोपमा
87 मालोपमा के उदाहरण है -
- मुख चंद्र और कमल समान है
- नील सरोरूह, नील मनी, नील नीरधर श्याम
- आशा मेरे हृदय मरू की मंजु मंदाकिनी
88 उपमेय में उपमान की संभावना को अलंकार कहते है - उत्प्रेक्षा
89 उपमेय में संभावना की अभिव्यक्ति के शब्द है - मानो, मनो, जानो
90 उत्प्रेक्षा, रूपक व उपमा से किस कारण अलग होता है - संभावना
91 उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण है -
- मानो दो तारे क्षितिज जाल से निकले
- शरद इंदिरा के मंदिर की मानो कोई गैल रही
- देख कर किसी की मृदु मुस्क्यान, मानो हंसी हिमालय की है
- विधु के वियोग से विकल मूक, नभ जला रहा था अपना उर
जलती थी तवा सदृश्य पथ की रज भी बनी भऊर
92 उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद है -
वस्तुत्प्रेक्षा, हेतुत्प्रेक्षा, फलोत्प्रेक्षा
93 एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावपा की जाती है (एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है) उसमें अलंकार होगा -
वस्तुत्प्रेक्षा
94 वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण है -
- लखत मंजु मुनि मण्डली मध्य सीय रघुचंद, ज्ञानसभा जनु तनु धरे भगति सच्चिानंद
- जनु ग्रह दशा दूसह दुखदायी
- हरि मुख मानो मधुर मयंक
95 हेतुत्प्रेक्षा अलंकार कहा जाता है - इसमें अहेतु में हेतु की संभावना की जाती है, जो हेतु नहीं है उसे हेतु मान लिया जाता है।
96 हेतुत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण है -
- अरूण भाये कोमल चरण भुवि चलिबे तें मानु
- मुख सम नहि, याते मनों चंदहि छाया छाय
- मुख सम नहि याते कमल मनु जल रह्ाो छिपाई
- सोवत सीता नाथ के भृगु मुनि दीनी लात
- वह मुख देख पाण्डू सा पडकर, गया चंद्र पश्चिम की ओर
97 फलोत्प्रेक्षा अलंकार कहते है - अफल में फल (उद्देश्य) की संभावना की जाती है।
98 फलोत्प्रेक्षा के उदाहरण है -
- तब मुख समता लहन को जल सेवत जलजात
- तब पद समता को कमल जल सेवत इक पांय
- बढ़त ताड को पेड यह मनु चूमन आकाश
99 रूपक अलंकार कहते है - जब एक वस्तु पर दूसरी वस्तु का आरोप किया जाए यथा मुख कमल है । (उपमेय में उपमान का आरोप किया जाए)
100 रूपक अलंकार के भेद है -
सांग रूपक, निरंग रूपक, परंपरित रूपक
101 सांग रूपक कहते है -
जब उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए साथ ही उपमान के अंगों का भी उपमेय के अंगों पर आरोप किया जाए।
102 सांग रूपक के उदाहरण है -
- उद्यो ! मेरी ह्दयतल था एक उद्यान न्यारा, शोभा देती अमिल उसमें कल्पना क्यारियां थी
- न्यारे- न्यारे कुसुम कितने भाव के थे अनेको, उत्साह के विपुल विटपी मुग्धकारी महा थे
103 जब केवल उपमान का आरोप उपमेय पर किया जाए तो रूपक होगा - निरंग रूपक
104 निरंग रूपक के उदाहण है -
- चरन- कमल मृदु मंजु तुम्हारे
- हरि मुख मुदुल मयंक
105 परम्परित रूपक है - परम्परित में दो रूपक होते है। एक रूपक दूसरे से परम्पराबध्द होता है।
106 परम्परित रूपक के उदाहरण है -
- आशा मेरे ह्दय मरू की मंजु मंदाकिनी है
- रवि कुल- कैरव विधु रघुनायक
- उदयो ब्रज नभ आई यह हरि मुख मधुर मयंक
107 जब सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान का भ्रम हो तो अलंकार होगा - भ्रांतिमान अलंकार
108 भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण है -
- जानि श्याम को स्याम घन नाचि उठे वन मोर
- ओस बिंदु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान
- मनि- सुख मेली ठारि कपि देही
- पट पोंछति चूनो समुझि नारी निपट अयानि
109 संदेह अलंकार की परिभाषा है - जब सादृश्य के कारण एक वस्तु में अनेकन्य वस्तु के होने की संभावना पडे अौर निश्चय न हो पाए तब संदेह अलंकार होता है।
110 संदेह अलंकार की पहचान के वाचक शब्द है - कि, किंधो, या, अथवा आदि
111 संदेह अलंकार के उदाहरण है -
- हे सखी! यह हरि का मुख है या चंद्रमा उगा है
- कहहि सप्रेम एक- एक वाही, राम लखन सखी हो हिं कि नाहीं
112 असंगति अलंकार है - जब साथ रहने वाली वस्तुओं को अलग- अलग स्थानों में रखा जाए।
113 असंगति अलंकार के उदाहरण है -
- पायन की सुधि भूल गयी, अकुलाय महावर आंखिन दीनो
- आये जीवन देन घन, लागे जीवन लेन
114 विभावना अलंकार के उदाहरण है -
- बिनु पद चले, सुने बिनु काना
- प्यास मिटी पानी बिना, मोहन को मुख देखि
- सहस सवार जिते सवा लेकर सौ असवार
- तेज छत्र धारिन हूं, असहन ताप करंत
115 सीतहहि लै दसकंध गयो, पै गयो है विचारो समुंदर बांध्यो में अलंकार है - असंगति
116 लागत लाज लगाम नहिं, नैक न गहत मरो, होत तोहि लखि बाल के दृग तुरंग मुंह जोर में अलंकार है - रूपक
117 घिर रहे थे घुंघराले बाल, अंस अवलम्बित मुख के पास नील घन शावक से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास में अलंकार होगा - उत्प्रेक्षा
118 जब उपमेय और उपमान में भिन्नता होने पर भी समानता स्थापित की जाए तब अलंकार होगा - उपमा
119 उपमेय पर उपमान का निषेध रहित आरोप होने पर अलंकार होगा - रूपक
120 लता भवन तें प्रकट भे, तेहि औसर दोउ भाई, निकले जनु जुग विमल विधु, जलद पटल बिलगाए में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
121 सादृश्यस के कारण उपमेय में उपमान का संशय हो वहां अलंकार होगा - संदेह
122 उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण है - उपमेय में उपमान की कल्पना
123 अलंकार व लक्षणों को सुमेलित कीजिए -
- यमक - भिन्न अर्थ वाले वर्ण समुदाय की क्रमश: आवृति
- श्लेष - एक ही शब्द में अनेक अर्थो का अभिधान
- असंगति - कारण व कार्य के निरंतर सम्बन्ध के परित्याग के साथ विरोध का आभास
- विभावना - प्रसिध्द कारण के अभाव में कार्योत्पति का चमत्कारपूर्ण वर्णन
124 सादृश्य के कारण उपमेय को निश्चयपूर्वक उपमान समझ लिया जाए तब कौनसा अलंकार होगा - भ्रांतिमान
125 जड़ प्रकृति के सजीव चित्रण के लिए छायावादी कवियों ने किस अलंकार का बहुतायत में प्रयोग किया - मानवीकरण
126 बीती विभावरी जाग री, अम्बर पनघट में डूबो रही तारा घट उषा नागरी में अलंकार है - रूपक और मानवीकरण
127 ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी, ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती है में अलंकार है - यमक
128 यों- यों बुडे स्याम रंग, त्यों- त्यों उवल होय में अलंकार है - विरोधाभास
129 वह इष्टदेव के मंदिर की पूजा सी, वह दीपशिख सी शांत भाव में लीन में अलंकार है - उपमा
130 भ्रांतिमान, विरोधाभास, विभावना व श्लेष में अर्थालंकार नहीं है - श्लेष
131 जहां काव्य में चमत्कार अर्थ पर आश्रित होता है, वहां अलंकार होगा - अर्थालंकार
132 सोहत ओढे पीत पट, स्याम सलोने गात, मनो नीलमनि सैल पर आतपपरयो प्रभात में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
133 पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात में अलंकार है- उपमा
134 धीरे- धीरे हिम आच्छादन हटने लगा धरातल से, जगी वनस्पतियां अलसाइ, मुख धोती शीतल जल से में अलंकार होगा - मानवीकरण
135 बढत- बढत सम्पति सलिल, मन सरोज बढ जाए, घटत- घटत फिर ना घटे बरू समूल कुम्हिलाय में अलंकार है - रूपक
136 इस काल मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा, मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
137 जानि स्याम घनश्याम को नाचि उठे वन मोर में अलंकार है - भ्रांतिमान
138 मुनि तापस जिनते दुख लहही ते नरेश बिनु पावक दहही में अलंकार होगा - विभावना
139 सारी बिच नारी है कि नारी बीच सारी है, सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है में अलंकार है - संदेह
140 उन्नत हिमालय से धवल यह सुरसरी यों टूटती मानो पयोधर से धरा के दुग्ध धारा छुटती में अलंकार होगा - उत्प्रेक्षा
141 जय- जय जय गिरिराज किशोरी, जय महेश मुख चंद्र चकोरी में अलंकार है - रूपक
142 सरद सरोरूह नैन, तुलसी भरे सनेह जल में अलंकार है- रूपक
143 है बिखेर देती वसुंधरा, मोती सबके सोने पर, रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होने पर में अलंकार है - मानवीकरण
144 बिनु पद चलै, सुने बिनु काना, कर बिनु कर्म करै विधि नाना में अलंकार है - विभावना
145 सरद सरोरूह नैन, तुलसी भरे सनेह जल में अलंकार है - रूपक
146 पीपरपात- सरिस मन डोला में अलंकार है - उपमा
147 रहिमन जो गति दीप की कुल कपूत गति सोय, बारे उजियिारे लगे बढे अंधेरो होय में अलंकार होगा - श्लेष
148 मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड, अवलोक रहा था बार- बार नीचे जल में निज महाकार में अलंकार दृष्टिगत होता है - रूपक
149 नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो यों बिजली का फूल, मेघ वन बीच गुलाबी रंग में अलंकार है - उत्प्रेक्षा व रूपक
150 निदंक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, बिनु पानी साबुन बिना, निरमल करत सुभाय में अलंकार है - विभावना
151 या मुरली मुरलीधर की, अधरानधरी अधरा न धरोंगी में अलंकार है - यमक
152 तुलसी सुरेश- चाप, कैधों दामिनी कलाप, कैधो चली मेरू ते कृसानु सरि भारी है में अलंकार है - संदेह
153 धनि सूखे भरे भादो मांहा, अबहु न आये सींचन नाहा में अलंकार है - विरोधाभास
154 कपि करि हृदय विचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब जानि असोक अंगार सीय हरिष उठि कर गह्यो में अलंकार है - भ्रांतिमान
155 कहते हुए यो पार्थ के दो बूंद, आंसू गिर पडे, मानो हुए दो सीपियों से व्यक्त दो मोती बडे में अलंकार है - उत्प्रेक्षा
156 भजन कह्यो तासो भयो, भयो न एकौ बार, दूरि भजन जासों कह्यो, सौ तै भयों गंवार में अलंकार है - यमक
157 लोचन सारथ करत है, तिल उपजावत नेह में अलंकार है - श्लेष
158 धीरे- धीरे संशय से उठ, बढ अपयश से शीघ्र अछोर, नभ के उर में उमड मोह से फैल लालसा से निशि भोर में अलंकार है - उपमा
159 उपमा के वाचक शब्द है - समान, सम, सा, से सी आदि
160 उत्प्रेक्षा के वाचक शब्द है - मनु, मानो, जनु, जनहू, जानो, मनहु आदि
161 रूपक के वाचक शब्द है - कोई भी नहीं इसमें उपमेय और उपमान होते है।
162 जहां कारण एक स्थान पर तथा कार्य अन्य स्थान पर वर्णित किया जाए वहां अलंकार होता है- असंगति
163 संदेह अलंकार के वाचक शब्द है = किधों, कैधों, या, अथवा
छन्द (ष्ट॥्हृष्ठ)
164 गणों की संख्या होती है - आठ (य मा ता रा ज भा न स ल ग म)
165 गण में कितने वर्ण होते है - तीन गुरु (स्स्स्)
166 रोला और उल्लाला के संयोग से बनने वाला छंद है - छप्पय
167 वर्ण, मात्रा, गति, यति के नियमों से नियंत्रित रचना कहलाती है - छंद
168 तीन वर्णो का समूह कहलाता है - गण
169 किस गण में तीनों वर्ण गुरु होते है - मगण
170 किस गण में तीनों वर्ण लघु होते है - नगण
171 पात भरी सहरी सकल सुत बारे- बारे। किस छंद का उदाहरण है - कवित्त का
172 मात्रिक छंद कहते है - मात्रिक छंद में एक मात्रा, दो मात्रा या संयुक्ताक्षर के आधार पर चरणों में मात्रा की गणना की जाती है। मात्रा संख्या का विधान होने से इन्हें मात्रिक छंद कहते है।
173 वर्णिक छंद की परिभाषा है - वर्णिक छंद में वर्णो की गणना होतीी है इसके लिए गण विधान रहता है। चरण में गणों के अनुसार वर्ण रखे जाते है उसी के अनुसार यति- गति रखी जाती है।
174 मात्रिक सम छंद है - तोमर, चौपई, चौपाई, शृंगार, रोला, रूपमाला, गीतिका, हरिगीतिका, सोरठाा, उल्लाला
175 मात्रिक विषम छंद है- कुण्डलिया, दोहा, रोला, छप्पय
176 वर्णिक सम छंद है- इंद्रवज्रा, उपेन्द्र वज्रा, उपजाति, वंशस्थ, भुजंग प्रयात, तोटक, दु्रतविलम्बित, वसंततिलका, शिखरणी, मंदाक्रांता, मतगयंद, मालती
177 'किसको पुकारे, यहां रोकर अरण्य बीच, चाहे जो करो शरण्य शरण तिहारे है' में छंद है - कवित्त
178 दिवस का अवसान समीप था। यह किस चरण का छंद है - दु्रत विलम्बित
179 कवित्त छंद के प्रत्येक चरण में वर्णो की संख्या होती है - 31
180 हरिगीतिका छंद के प्रत्येक चरण में मात्राएं होती है - 28 तथा अंत में एक लघु एक गुरु
181 दिवस एक प्रभंजन का हुआ। अति प्रकोप घटा नभ में घिरी। किस वर्णिक छंद से समबन्धित है - दुतविलम्बित
182 पदकमल धोई चढाई नाव न नाथ उतराई चहों। किस छंद से सम्बन्धित है - सवैया
183 दोहा छंद के विषम चरणों की मात्राएं होती है- 13- 13
184 छंद शास्त्र में यति कहते है - लय का अनुगमन करने वाले विरामों को
185 छंद शास्त्र में गति कहते है- लय के अनुसार प्रवाह का निर्वाह करना
186 छंद शास्त्र में गति क्यों आवश्यक है- मात्रिक छंदों में चरण की मात्राओं की सही गणना का ध्यान रखने के लिए।
187 किस छंद के प्रत्येक चरण में क्रमश: एक नगण, दो भगण और एक रगण होता है और प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते है- दुतविलम्बित छंद में (न भा भ रा एवं 12 वर्ण)
188 दु्रतविलम्बित छंद के उदाहरण है -
- प्रबल जो तुम्हे में पुरूषार्थ हो, सुलभ कौन तुम्हे न पदार्थ हो
प्रगति के पथ में विचरो उठो। भुवन में सुख- शांति भरो उठो
- दिवस का अवसान समीप था, गगन कुछ लोहित हो चला
189 हरिगीतिका छंद का परिचय है - यह मात्रिक छंद है। प्रत्येक चरण में कुल 28 मात्रा। 16- 12 पर यति। चरणांत में एक लघु तथा एक गुरु वर्ण होना आवश्यक
190 हरिगीतिका के उदाहरण है -
- जो चाहता संसार में कुछ मान औ सम्मान है, उसके लिए इस मंत्र से बढ कर न और विधान है
- जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है।
191 कवित्त छंद की परिभाषा हे - यह वर्णिक मुक्तक छंद है। इसमें केवल वर्णो की संख्या निश्चित रहती है। प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है तथा 16 व 15 वर्णो पर यति होती है। इसे मनहरण कवित्त छंद भी कहते है।
192 मनहरण कवित्त या धनाक्षरी के उदाहरण है -
- पात भरी सहरी, सकल सुत बोर- बोर, केवट की जाति, कुछु बेद ना पढाइहों
193 सवैया छंद का उदाहरण है -
- पदकमल धोई चढाई नाव न नाथ उतराई चहौं।
194 दोहा छंद के लक्षण है - यह मात्रिक छंद है। इसमें विषम चरणों में 13- 13 मात्राएं तथा सम चरण में 11- 11 मात्राएं होती है। विषम चरण के अंत में जगण (ढ्ढ स् ढ्ढ) न रहे। सम चरण के अंत में लघु होता है।
195 दोहा छंद का उदाहरण है = नहीं पराग नहिं मधुर मधु,नहि विकास इही काल
- मानस मंदिर में सती, पति की प्रतिमा थाप
जलती सी उस विरह में, बनी आरती आप
196 बत्तीस से अधिक मात्राओं के और छब्बीस से अधिक वर्णो के छंद कहलाते है - दण्डक
197 छंद की प्रत्येक पंक्ति कहलाती है - चरण
198 चारों चरणों में समान मात्राओं वाले छंद को कहते है - मात्रिक सम छंद
199 छंद में पंक्ति का पहला व तीसरा चरण कहलाता है - विषम
200 छंद में पंक्ति का दूसरा और चौथा चरण कहलाता है - सम
Bahut sundar prayas Sir ji sadar naman
जवाब देंहटाएंBahut achchha..
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर जी आपने बहुत अच्छा हिंदी साहित्य इतिहास सामने लाए गुरुदेव इसकी कोई किताब है तो हमें बताने की कृपा करें नेट से पढ़ने में थोड़ी दिक्कत आती है
जवाब देंहटाएंगुरुदेव आदिकाल से लगाकर आधुनिक काल तक और काव्यशास्त्र की पीडीएफ उपलब्ध हो तो करवाइए आपका आभारी रहूंगा धन्यवाद
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