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मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

1. मो सम कौन कुटिल खलकामी - सूरदास 2. यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धावनो है - बोधा 3. माधव हम परिनाम निरासा - विद्यापति 4. हरि हू राजनीति पढ़ि आए - सूरदास 5. भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो - सूरदास 6. इन मुसलमान जनन पर कोटिन हिंदू बारिह - भारतेंदु 7. खुल गए छंद के बंध- पंत 8. तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है - हजारीप्रसाद द्विवेदी 9. धुनि ग्रमे उत्पन्नों, दादू योगेंद्रा महामुनि- रज्जब 10. काव्य आत्मा की संल्पनात्मक अनुभूति है - जयशंकर प्रसाद 11. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी - रैदास 12. सखा श्रीकृष्ण के गुलाम राधा रानी के - भारतेंदु 13. देखे मुख भावै अनदेखे कमल चंद ताते मुख मुरझे कमला न चंद  - केशवदास 14. एक नार नक अचरज किया साँप मार पिंजरे में दिया - खुसरो 15. केशव कहि न जादु का कहिए तुलसीदास 16. देसिल बअना सब इन मिट्ठा तै तैसन जपऔ अवहठ्ठा  - विद्यापति 17. पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना हो सो लेउ - विट्ठलनाथ 18. जाहि मन पवन न संचरई  रवि ससि नहिं पवेस- सरहपा 19. यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता - आचार्य शुक्ल 20. अवधू रहिया हाटे वाटे रूप बिरष की छाया तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया - गोरखनाथ 21. राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित  - पंत 22. भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु लज्जेयं तु वयंसिअहू जइ मग्गा घरु संतु - हेमचंद्र 23. निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है - हजारीप्रसाद द्विवेदी 24. पुस्तक जल्हण हाथ दै चलि गज्जन नृप काज  - चंदबरदाई 25. छोङो मत यह सुख का कण है - जयशंकर प्रसाद 26. मनहु कला ससभान कला सोलह सो बन्निय  - चंदबरदाई 27. प्रयोगवाद बैठे-ठाले का धंधा है   - नंददुलारे वाजपेयी 28. बारह बरस लौं कूकर जिए, अरू तेरह लै जिए सियार बरिस अठारह छत्री जिए, आगे जीवन को धिक्कार  - जगनिक 29. यदि इस्लाम न भी आया होता तो भी भक्ति साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज - हजारीप्रसाद द्विवेदी 30. गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग - तुलसीदास (कवितावली से) 31. साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है - बालकृष्ण भट्ट 32. झिलमिल झगरा झूलते बाकी रही न काहु गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु  - कबीर 33. भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो - हजारीप्रसाद द्विवेदी 34. दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना राम नाम का मरम है आना  - कबीर 35. मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं - प्रेमचंद 36. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम - मलूकदास 37. सूर अपनी आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए है - रामचंद्र शुक्ल 38. विक्रम धँसा प्रेम का बारा  सपनावती कहँ गयऊ पतारा  - मंझन (मधुमालती से) 39. उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है - चंद्रधर शर्मा गुलेरी 40. कब घर में बैठे रहैं, नाहिंन हाट बाजार मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार  - बनारसीदास जैन 41. बालचंद बिज्जावइ भाषा, नहिंन दुहु नहिं लग्गई दुज्जन हासा   - विद्यापति 42. मुझको क्या तू ढूँढ़े बंदे मैं तो तेरे पास में  - कबीर 43. बलंदीप देखा अँगरेजा, तहाँ जाई जेही कठिन करेजा - उसमान (चित्रावली में) 44. सूरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय गोद लिए हुलसी फिरैं तुलसी सो सुत होय  - रहीम 45. कहा करौ बैकुंठहिं जाय जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोदा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय  - परमानंद दास 46. जाके प्रिय न राम वैदेही सो नर तजिए कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही   - तुलसीदास (विनयपत्रिका से) 47. जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवतृ भूषण बिनु न विराजई कविता बनिता मित्त  - केशवदास 48. आँखिन मूँदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै - मतिराम 49. अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा तीन अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन  - देव 50. भले बुरे सम, जौ लौं बोलत नाहिं जानि परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं  - वृंद 51. नेही महा ब्रजभाषा प्रवीन और संदरतानि के भेद को जानै - ब्रजनाथ 52. एक सुभान कै आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को - बोधा 53. आठ मास बीते जजमान अब तो करो दच्छिना दान  - प्रतापनारायण मिश्र 54. साखी सबदी दोहरा, कहि कहिनी उपखान भगति निरूपहिं निन्दहिं बेद पुरान  - तुलसी 55. निर्गुण ब्रह्म को कियो समाधु तब ही चले कबीरा साधु  - दादू 56. सब मम प्रिय सब मम उपजाये सबतैं अधिक मनुज मोहि भाये  - तुलसी 57. पढ़ि कमाय कीन्हों कहा हरे देश कलेश जैसे कन्ता घर रहे तैसे रहे विदेस  - प्रतापनारायण मिश्र 58. मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिंदवी मेें पूछो - अमीर खुसरो 59. मैं मरूँगा सुखी मैने जीवन की धज्जियाँ उङाई हैं  - अज्ञेय 60. यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट  - चरनदास 61. रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई कुलवंती सत सो सति भई  - कुतुबन 62. जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा। हिंदु मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ  - नूरमुहम्मद 63. मो मन गिरिधर छवि पै अटक्यो ललित त्रिभंग चाल पै चाल कै, चिबुक चारु गङि ठटक्यो  - कृष्णदास 64. संतन को कहा सीकरी सों काम आवत जात पनहियाँ टूटी बिसरि गयो हरि नाम  - कुंभनदास 65. बसो मेरे नैनन में नंदलाल मोहनि मूरत, साँवरि सूरत, नैना बने रसाल  - मीराबाई 66. लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल   - होलराय 67. कुंदन को रंग फीकौ लगे - मतिराम 68. अमिय, हलाहल, मदभरे, सेत, स्याम, रतनार जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत एक बार   - रसलीन 69. कनक छुरी सी कामिनी काहे को कटि छीन - आलम 70 अति सुधौ सनेह को मारग है जहँ नैकू सयानपन बाँक नहीं   - घनानंद 71. आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के गाज ते दराज कौन नजर तिहारी है  - चंद्रशेखर 72. कलि कुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो -  नाभादास जी 73. मात पिता जग जाइ तज्यो विधिहू न लिख्यो कछु भाल भलाई  - तुलसी 74. अपना मस्तक काटिकै बीर हुआ कबीर - दादू 75. सो जागी जाके मन में मुद्रा रात-दिवस ना करई निद्रा  - कबीर 76. पराधीन सपनेहु सुख नाहीं- तुलसी 77. काहे री नलिनी तू कम्हलानी तेरे ही नालि सरोवर पानी  - कबीर 78. काव्य की रीति सीखि सुकवीन सों देखी सुनि बहुलोक की बातें - भिखारीदास

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