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बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

सूरदास

सूरदास 

जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)

जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार)

- आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट 'रुनकता' नामक ग्राम माना गया है|

मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में

गुरु का नाम- वल्लभाचार्य

गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)

काव्य भाषा- ब्रज

#रचनाएँ:-

#सूरसागर:-

- यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है|

- इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है|

- भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी 'बारह स्कंधो' में किया गया है|

-इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है|

- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-" सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है|"

- नगेन्द्र ने इस रचना को 'अन्योक्ति' एवं 'उपालम्भ काव्य' कहकर पुकारा है|

#साहित्यलहरी:-

- यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|

- इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है|

- अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्व माना जाता है|

#सूरसारावली:-

- यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है|

#विशेष_तथ्य:-

- सूरदास जी को ' खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज' आदि नामों से भी जाना जाता है|

- आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-'वात्सल्य रस सम्राट' व 'जीवनोत्सव का कवि' कहा है|

-गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ' पुष्टिमार्ग का जहाज' कहकर पुकारा था| इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था:-

" पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ|"

- हिंदी साहित्य जगत में 'भ्रमरगीत' परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है|

- कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं|

- आचार्य शुक्ल ने कहा है- "सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है|"

- सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है|

- हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-

"सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|

और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश||"

- सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है| आचार्य शुक्ल ने लिखा है:-

" सूर्य अपनी आंखों से वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं |"


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