सूरदास
जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)
जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार)
- आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट 'रुनकता' नामक ग्राम माना गया है|
मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में
गुरु का नाम- वल्लभाचार्य
गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)
काव्य भाषा- ब्रज
#रचनाएँ:-
#सूरसागर:-
- यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है|
- इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है|
- भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी 'बारह स्कंधो' में किया गया है|
-इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है|
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-" सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है|"
- नगेन्द्र ने इस रचना को 'अन्योक्ति' एवं 'उपालम्भ काव्य' कहकर पुकारा है|
#साहित्यलहरी:-
- यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|
- इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है|
- अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्व माना जाता है|
#सूरसारावली:-
- यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है|
#विशेष_तथ्य:-
- सूरदास जी को ' खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज' आदि नामों से भी जाना जाता है|
- आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-'वात्सल्य रस सम्राट' व 'जीवनोत्सव का कवि' कहा है|
-गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ' पुष्टिमार्ग का जहाज' कहकर पुकारा था| इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था:-
" पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ|"
- हिंदी साहित्य जगत में 'भ्रमरगीत' परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है|
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं|
- आचार्य शुक्ल ने कहा है- "सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है|"
- सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है|
- हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-
"सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|
और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश||"
- सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है| आचार्य शुक्ल ने लिखा है:-
" सूर्य अपनी आंखों से वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं |"
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