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सोमवार, 2 दिसंबर 2019
1. मो सम कौन कुटिल खलकामी - सूरदास
2. यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धावनो है - बोधा
3. माधव हम परिनाम निरासा - विद्यापति
4. हरि हू राजनीति पढ़ि आए - सूरदास
5. भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो - सूरदास
6. इन मुसलमान जनन पर कोटिन हिंदू बारिह - भारतेंदु
7. खुल गए छंद के बंध- पंत
8. तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है - हजारीप्रसाद द्विवेदी
9. धुनि ग्रमे उत्पन्नों, दादू योगेंद्रा महामुनि- रज्जब
10. काव्य आत्मा की संल्पनात्मक अनुभूति है - जयशंकर प्रसाद
11. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी - रैदास
12. सखा श्रीकृष्ण के गुलाम राधा रानी के - भारतेंदु
13. देखे मुख भावै अनदेखे कमल चंद ताते मुख मुरझे कमला न चंद - केशवदास
14. एक नार नक अचरज किया साँप मार पिंजरे में दिया - खुसरो
15. केशव कहि न जादु का कहिए तुलसीदास
16. देसिल बअना सब इन मिट्ठा तै तैसन जपऔ अवहठ्ठा - विद्यापति
17. पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना हो सो लेउ - विट्ठलनाथ
18. जाहि मन पवन न संचरई रवि ससि नहिं पवेस- सरहपा
19. यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता - आचार्य शुक्ल
20. अवधू रहिया हाटे वाटे रूप बिरष की छाया तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया - गोरखनाथ
21. राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज
जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित - पंत
22. भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु लज्जेयं तु वयंसिअहू जइ मग्गा घरु संतु - हेमचंद्र
23. निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है - हजारीप्रसाद द्विवेदी
24. पुस्तक जल्हण हाथ दै चलि गज्जन नृप काज - चंदबरदाई
25. छोङो मत यह सुख का कण है - जयशंकर प्रसाद
26. मनहु कला ससभान कला सोलह सो बन्निय - चंदबरदाई
27. प्रयोगवाद बैठे-ठाले का धंधा है - नंददुलारे वाजपेयी
28. बारह बरस लौं कूकर जिए, अरू तेरह लै जिए सियार
बरिस अठारह छत्री जिए, आगे जीवन को धिक्कार - जगनिक
29. यदि इस्लाम न भी आया होता तो भी भक्ति साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज - हजारीप्रसाद द्विवेदी
30. गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग - तुलसीदास (कवितावली से)
31. साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है - बालकृष्ण भट्ट
32. झिलमिल झगरा झूलते बाकी रही न काहु गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु - कबीर
33. भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो - हजारीप्रसाद द्विवेदी
34. दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना राम नाम का मरम है आना - कबीर
35. मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं - प्रेमचंद
36. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम - मलूकदास
37. सूर अपनी आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए है - रामचंद्र शुक्ल
38. विक्रम धँसा प्रेम का बारा सपनावती कहँ गयऊ पतारा - मंझन (मधुमालती से)
39. उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है - चंद्रधर शर्मा गुलेरी
40. कब घर में बैठे रहैं, नाहिंन हाट बाजार मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार - बनारसीदास जैन
41. बालचंद बिज्जावइ भाषा, नहिंन दुहु नहिं लग्गई दुज्जन हासा - विद्यापति
42. मुझको क्या तू ढूँढ़े बंदे मैं तो तेरे पास में - कबीर
43. बलंदीप देखा अँगरेजा, तहाँ जाई जेही कठिन करेजा - उसमान (चित्रावली में)
44. सूरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय गोद लिए हुलसी फिरैं तुलसी सो सुत होय - रहीम
45. कहा करौ बैकुंठहिं जाय जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोदा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय - परमानंद दास
46. जाके प्रिय न राम वैदेही सो नर तजिए कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही - तुलसीदास (विनयपत्रिका से)
47. जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवतृ भूषण बिनु न विराजई कविता बनिता मित्त - केशवदास
48. आँखिन मूँदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै - मतिराम
49. अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा तीन अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन - देव
50. भले बुरे सम, जौ लौं बोलत नाहिं जानि परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं - वृंद
51. नेही महा ब्रजभाषा प्रवीन और संदरतानि के भेद को जानै - ब्रजनाथ
52. एक सुभान कै आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को - बोधा
53. आठ मास बीते जजमान अब तो करो दच्छिना दान - प्रतापनारायण मिश्र
54. साखी सबदी दोहरा, कहि कहिनी उपखान भगति निरूपहिं निन्दहिं बेद पुरान - तुलसी
55. निर्गुण ब्रह्म को कियो समाधु तब ही चले कबीरा साधु - दादू
56. सब मम प्रिय सब मम उपजाये सबतैं अधिक मनुज मोहि भाये - तुलसी
57. पढ़ि कमाय कीन्हों कहा हरे देश कलेश जैसे कन्ता घर रहे तैसे रहे विदेस - प्रतापनारायण मिश्र
58. मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिंदवी मेें पूछो - अमीर खुसरो
59. मैं मरूँगा सुखी मैने जीवन की धज्जियाँ उङाई हैं - अज्ञेय
60. यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट - चरनदास
61. रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई कुलवंती सत सो सति भई - कुतुबन
62. जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा।
हिंदु मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ - नूरमुहम्मद
63. मो मन गिरिधर छवि पै अटक्यो
ललित त्रिभंग चाल पै चाल कै, चिबुक चारु गङि ठटक्यो - कृष्णदास
64. संतन को कहा सीकरी सों काम
आवत जात पनहियाँ टूटी बिसरि गयो हरि नाम - कुंभनदास
65. बसो मेरे नैनन में नंदलाल
मोहनि मूरत, साँवरि सूरत, नैना बने रसाल - मीराबाई
66. लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल - होलराय
67. कुंदन को रंग फीकौ लगे - मतिराम
68. अमिय, हलाहल, मदभरे, सेत, स्याम, रतनार
जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत एक बार - रसलीन
69. कनक छुरी सी कामिनी काहे को कटि छीन - आलम
70 अति सुधौ सनेह को मारग है जहँ नैकू सयानपन बाँक नहीं - घनानंद
71. आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के गाज ते दराज कौन नजर तिहारी है - चंद्रशेखर
72. कलि कुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो - नाभादास जी
73. मात पिता जग जाइ तज्यो विधिहू न लिख्यो कछु भाल भलाई - तुलसी
74. अपना मस्तक काटिकै बीर हुआ कबीर - दादू
75. सो जागी जाके मन में मुद्रा रात-दिवस ना करई निद्रा - कबीर
76. पराधीन सपनेहु सुख नाहीं- तुलसी
77. काहे री नलिनी तू कम्हलानी तेरे ही नालि सरोवर पानी - कबीर
78. काव्य की रीति सीखि सुकवीन सों देखी सुनि बहुलोक की बातें - भिखारीदास
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